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यहां होती है भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा; Achaleshwar Mahadev Temple Mount Abu



देवों के देव महादेव जिनकी पूजा देवता, राक्षस, मनुष्य, यश, नाग, गंधर्व, किन्नर सभी करते हैं। जिनके कई चमत्कारी मंदिर देश भर में मौजूद है। 
Achaleshwar Mahadev Temple Mount Abu


आमतौर पर भगवान शिवा को शिवलिंग या उनके मूर्ति रूप में पूजते हुए देखा होगा, लेकिन राजस्थान के इकलौते खूबसूरत हिल स्टेशन माउंट आबू में मौजूद है अचलेश्वर महादेव मंदिर। जो अपने आप में बिल्कुल अनूठा है। यहां भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग या उनकी मूर्ति की नहीं बल्कि दाहिने पर के अंगूठे के स्वरूप की पूजा होती है। 

मान्यता है की इस पर्वत को स्वयं महादेव ने अपने दाहिने अंगूठे से थाम रखा है। पुराने के पैन पल्टो तो स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है। अचलेश्वर महादेव मंदिर पश्चिम राजस्थान के शिरोही जिले में ऋषि वशिष्ठ की तपस्थली माउंट आबू के अचलगढ़ में स्थापित है। 

इस प्राचीन मंदिर के इतिहास में भी कई बड़े रहस्य छिपे हुए हैं। कहते हैं की पौराणिक कल में माउंट आबू के अचलगढ़ में एक गहरी और विशाल ब्रह्म खाई हुआ करती थी। इस गहरी खाई में ऋषि वशिष्ठ की गाय गिर जय करती थी। इस समस्या को लेकर ऋषियों ने देवताओं से इस खाई को बांटने की गुहार लगाई ताकि ऋषि आश्रमों में पल रही गाय का जीवन बचाया जा सके। ऋषियों के आग्रह पर देवताओं ने नंदीवर्धन को उसे ब्रह्म खाई को बांटने का आदेश दिया। 

जिसेअर्बुध नाम के एक सांप ने अपनी पीठ पर रखकर खाई तक पहुंचा था। लेकिन अर्बुध सांप को इस बात का अहंकार हो गया की उसने पूरा पर्वत अपनी पीठ पर उठा रखा है और उसे ज्यादा महत्व भी नहीं दिया जा रहा।  इस लिए अर्बुध सांप हिलने लगा और इधर उधर कम्पन शुरू हो गया। तब ऋषि मुनिओने देवाधिदेव महादेव से गुहार लगाई और अपने भक्तों की पुकार सुनकर भगवान शिवा ने अपने अंगूठे से पर्वत को स्थिर कर दिया और अर्बुध सांप का घमंड चकनाचूर हो गया। 

कहते हैं की पर्वत को अचल करने की वजह से ही इस स्थान का नाम भी अचलगढ़ पड़ा। मंदिर में अंगूठा नमा प्रतिमा शिवा के दाहिने पर का वही अंगूठा है जिसे शिवजी ने काशी से बैठे हुए थमा था। इसीलिए माउंट आबू को अर्धकशी भी कहा जाता है। 

यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में भगवान शिवा के अंगूठे की पूजा अर्चना की जाति हैं।  कहते हैं की ये दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां महाकाल के अंगूठे नुमाप गोल भूरे रंग के पत्थर की पूजा होती है। यह गोल पत्थर गर्भ ग्रह के एक कुंड से निकाला है और ये कुंड भी कोई साधारण कुंड नहीं है। कहते हैं की गर्भ ग्रह की जीस गोलकाही से ये पत्थर निकाला है उसका कोई अंत ही नहीं है। दावा किया जाता है की इस ब्रह्म कुंड में कितना भी आप पानी डालिए वो कहां जाता है इसका रहस्य किसी को भी नहीं पता। 

माउंट आबू का पौराणिक नाम अर्बूदांचल है और इसे ऋषि वशिष्ठ की तपस्थली माना जाता है। मान्यता है की माउंट आबू आज भी भगवान शंकर के इसी अंगूठे की वजह से ही टीका हुआ है और इसके हतटे ही माउंट आबू भी इस ब्रह्म खाई में धस जाएगा। 

(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें) RRR
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