क्या आपने कभी सोचा है कि दूध चीनी खाद और किसानों को कर्ज देने वाले सहकारी संस्थान भी पढ़ाई लिखाई का हिस्सा बन सकते हैं?
अब यह होने जा रहा है। भारत में पहली बार बनने जा रही है सहकारिता आधारित यूनिवर्सिटी। जिसका नाम होगा त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय। सरकार ने 3 फरवरी 2025 को इस बिल को संसद में पेश कर दिया है और अगर सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही यह यूनिवर्सिटी हकीकत बन जाएगी।
लेकिन यह आखिर क्यों इतनी खास है और क्यों इसे देश के सहकारी आंदोलन में क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है?
अब जरा सोचिए भारत में 19% किसानों को जो कृषि ऋण मिलता है। 35 % खाद का वितरण 31 % चीनी का उत्पादन और 21 % मछली उत्पादन। सब कुछ सहकारी संस्थानों की वजह से ही होता है। लेकिन इस क्षेत्र में प्रोफेशनल ट्रेनिंग का बड़ा अभाव है। यही वजह थी कि साल 2021 में गृह मंत्री अमित शाह ने नेशनल कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी बनाने की बात कही थी। और अब वही सपना त्रिभुवन सहकारी विश्व विद्यालय के रूप में पूरा होने जा रहा है।
यह यूनिवर्सिटी बनेगी गुजरात के आनंद में। जहां पहले से ही मौजूद है आईआरएमए यानी इंस्टिट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट आनंद। आईआरएम को डेरी और ग्रामीण प्रबंधन में एक्सपर्ट माना जाता है। और अब इसे नई यूनिवर्सिटी का हिस्सा बना दिया जाएगा। यानी आईआरएमए वालों को टेंशन लेने की जरूरत नहीं। क्योंकि आईआरएमए को खत्म नहीं किया जाएगा बल्कि इसे नई यूनिवर्सिटी का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बना दिया जाएगा। इससे इसकी पहचान बनी रहेगी बल्कि इसे और बड़ा प्लेटफार्म भी मिलेगा।
अब सवाल यह है कि यह यूनिवर्सिटी आम यूनिवर्सिटी से अलग कैसे होगी?
यहां सिर्फ कॉमर्स, साइंस या आर्ट्स नहीं पढ़ाया जाएगा, बल्कि सहकारिता की पूरी पढ़ाई होगी। मतलब अगर आपको डेरी, फिशरी, शुगर इंडस्ट्री, ग्रामीण बैंकिंग, कोऑपरेटिव, फाइनेंस मार्केटिंग या ऑडिटिंग में करियर बनाना है तो यह यूनिवर्सिटी आपके लिए बेस्ट होगी। यही नहीं अलग-अलग राज्यों में सहकारी संस्थानों की जरूरत के हिसाब से इस यूनिवर्सिटी से चार-पांच कॉलेज और जुड़े होंगे। ताकि ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स को फायदा मिले।
सरकार का सपना है सहकार से समृद्धि। मतलब अगर सरकारी संस्थानों को अच्छी ट्रेनिंग और सही लीडरशिप मिलेगी तो वे और मजबूत बनेंगे और किसानों ग्रामीणों और छोटे व्यापारियों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होंगे। इसके लिए सरकार स्वयं जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्म का भी इस्तेमाल करेगी। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस ट्रेनिंग का फायदा उठा सकें।
यह यूनिवर्सिटी सिर्फ एक नया कैंपस नहीं है बल्कि भारत के सहकारी आंदोलन को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अगर यह सही ढंग से काम करता है तो ना सिर्फ किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों को फायदा मिलेगा। बल्कि सरकारी संस्थानों में जॉब के नए मौके भी बनेंगे।
आपको क्या लगता है क्या यह यूनिवर्सिटी भारत में सहकारी आंदोलन को नई ऊंचाइयों पर ले जा पाएगी ?
(ये आर्टिकल में सामान्य जानकारी आपको दी गई है अगर आपको किसी भी उपाय को apply करना है तो कृपया Expert की सलाह अवश्य लें) RRR
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